ऑनलाइन प्रदर्शनी श्रृंखला – Online Exhibition Series-6
केरल के पुनीत वन- “कावु”
हिन्दुस्तान के सुदूर क्षेत्रों में निवासरत लोक तथा जनजातीय समुदायों के लोग जिस प्राकृतिक पर्यावरण में रहते हैं उसे विभिन्न रूपों में पूजते हैं । प्रकृति पूजा का ऐसा ही एक स्वरूप वनस्थलों की पूजा अर्थात पुनीत वन भी है। पुनीत वन एक ही प्रजाति विशेष या अनेक प्रजातियों के वृक्षों का एक समूह होता है जिसे स्थानीय समुदायों द्वारा अपने देवी-देवताओं एवं पूर्वजों को समर्पित किया जाता है। यह कभी-कभी एक अकेला पुराना विशाल वृक्ष भी हो सकता है। पवित्र वन इनको मानने वाले समुदायों में धार्मिक आस्था का घोतक भी होते हैं। पुनीत वन में पूजा स्थल भी देखे जाते हैं। इन वनों से पेड़ों को काटना या अन्य वनस्पतियों का उपयोग करना पूरी तरह से वर्जित होता है साथ ही इनमें वास करने वाले जीव जंतुओ को क्षति भी नहीं पहुँचाई जाती है।
समुदायों की परिवर्तनशील जीवन शैली के अनुरूप ही इन वनों में भी विविधताएँ एवं जटिलताएँ आती रही हैं। इन पुनीत वनों का आकार कुछ वर्ग मीटर से लेकर कुछ हेक्टेयर तक हो सकता है। इनमें स्थानीय समुदायों द्वारा समय समय पर धार्मिक गतिविधियाँ संपादित की जाती हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में इन पवित्र वनों को विभिन्न नामों से जाना जाता है: उदाहरण स्वरूप- केरल में कावु, तमिलनाडु में कोविल काडू, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सारना, राजस्थान में ओरण, पं बंगाल में जहरेयन/राजवंशी, महाराष्ट्र में देबराई, हिमाचल प्रदेश में देव वन, मणिपुर में उमंगलाई आदि।
ये पवित्र वन एक पारिस्थिकीय तंत्र होते हैं जिनमें पोषक तत्वों के चक्रवत निर्माण, मृदाक्षरण की रोकथाम, जल का पुन: उत्पादन और जैव विविधता का संरक्षण इत्यादि देखने को मिलता है। राजस्थान जैसे रेतीले इलाकों में ये पवित्र वन टीलों को बाँधे रहते हैं वहीं पहाड़ो में मिट्टी के कटाव को रोकते हैं। इन वनों के अंदर जीवों की प्रजातियों को आश्रय के साथ साथ सुरक्षा भी मिलती हैं । इन विभिन्न स्थलो में अनेक लुप्त प्राय वृक्षों के साथ साथ कई औषधीय वृक्ष भी संरक्षित रहते हैं।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय अपने उद्देश्यों के अंतर्गत प्रारंभ से ही लोक तथा जनजातीय समुदायों की जैव-सांस्कृतिक विशेषताओं को प्रदर्शित एवं संरक्षित करता रहा है। इसी तारतम्य् में संग्रहालय ने अपने परिसर में देश के विभिन्न क्षेत्रों से चुनिन्दा पुनीत वनों को पुनीत वन मुक्ताकाश प्रदर्शनी के रूप में स्थापित किया है।
केरल के पुनीत वन- “कावु”
ऑनलाइन प्रदर्शनी शृंखला के अंतर्गत इस हफ्ते संग्रहालय द्वारा अपनी इसी प्रदर्शनी से केरल के पुनीत वन- “कावु” को प्रदर्शित किया जा रहा है।
केरल के परिस्थितिकीय तंत्र में कावु की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां 2000 से अधिक संरक्षित पुनीत वन हैं जिनकी देखभाल व्यक्ति विशेष के साथ-साथ देवास्वामी पुनीत ट्रस्ट द्वारा की जाती है। पूर्व में अय्यप्पा देव को समर्पित अय्यप्पन कावु केरल में सबसे ज्यादा थे। उत्तरी केरल में ज्यादातर पुनीत वन देवी या पूर्वजों की आत्माओं यथा अम्मा, अयलक्षी, अयीरावली, भगवती दुर्गा महिषासुर मर्दिनी, वन-दुर्गा, वन-देवता, मारूथा, मदन, चक्षी, गंधर्वन, योगेष्वरन, मुथप्पन आदि से संबंधित हैं जबकि दक्षिण केरल में ये ज्यादातर सर्प पूजा यथा नागम, नागराजा, नागिनी, सर्पम आदि से संबंधित हैं। कावु में संपन्न होने वाले अनुष्ठान, समुदाय विशेष तथा कावु के संरक्षक देवता के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। दक्षिण केरल में 10 या 12 वर्ष में एक बार सर्पदेव को प्रसन्न करने के लिये सर्पम पट्ठ का अनुष्ठान पाठ किया जाता है। उत्तरी केरल में देवी को समर्पित कावु में आनुष्ठानिक नृत्य तैय्यम या तैय्याट्टम किया जाता है।
संग्रहालय की मुक्ताकाश प्रदर्शनी पुनीत वन में केरल के कावु की स्थापना 26 सितम्बर, 1999 को कोझीकोड (कालीकट) की किरताड्स (KIRTADS) संस्था के सहयोग से की गई थी। इस अवसर पर कावु से जुड़ी लुप्तप्राय पेड़-पौधों की प्रजातियों के अतिरिक्त सर्पदेव की पूजा को समर्पित स्थान नाग-थाटा की प्रतिष्ठा भी की गई।
“Kavu”- A Sacred Grove from Kerala
This week Museum is presenting “Kavu”- a sacred grove from Kerala under its online exhibition series.
‘Kaavu’ are numerous throughout the length and breadth of Kerala. These sacred groves perform a unique role in bio-diversity management in Kerala. There are over 2000 well preserved sacred groves, managed by private individuals and Devaswami Trusts. Many myths, legends and faiths are associated with the sacred groves of Kerala. ‘Ayyappan Kaavu’, the sacred groves dedicated to Lord Ayyappa, used to be the most common ‘in Kerala in the past. The sacred groves in North Kerala are mostly associated with goddesses or ancestral spirits like Amma, Ayalakshi, Ayiravalli, Bhagavati, Durga, Mahishasur Mardini, Vana Durga, Vanadevatha, Marutha, Madan, Yakshi, Gandharvan, Yogeswaran, Muthappan etc., while in south Kerala, these are generally associated with snake worship like Nagam, Nagaraja, Nagini, Sarpam. The rituals and rites, performed in the sacred groves, vary with the region, caste and patron deity of the sacred grove. A ritualistic recitation called ‘Sarpam Pattu’ is performed in Central and South Kerala, once every 10 or 12 years, to propitiate the snake gods. In the sacred groves, associated with goddesses in North Kerala, a ritual dance called ‘Theyyam’ or ‘Theyyattam’ is performed.
Pavithra Vanam’/‘Kaavu’ was installed along with a prototype of the Nagathara shrine in the open air exhibition area of this museum on 26 of September, 1999, in collaboration with KIRTADS of Kozhikode. On this occasion, rare tree saplings associated with this sacred grove were also planted with great care.







